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लव की सजा

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“न जाने कौन सी सोच थी ,
जब निकल पड़े तेरी ओर,
हर रस्म-रिवाज को तोड़ दिया,
हकीकत की चाह में जीना चाहा,
ठोकर लगी तब होश आया,
दिल की सारी तमनाओ को पाने में,
अपनी जिंदगी आँख मूँद कर,
झोंख दी नरक की आग में,
इस तपिश से मेरा परिवार तक,
झुलस गया तेरी चाह में,
जब-जब सम्भालना चाहा अपने को,
वक्त के तूफानी थपेड़ो ने फिर पटका,
न चाहते हुए तेरी ओर!

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